सामवेद (अध्याय 15)
एते सोमा अभि प्रियमिन्द्रस्य काममक्षरन् । वर्धन्तो अस्य वीर्यम् ॥ (४)
ये सोम इंद्र को प्रिय हैं. सोम कामनाओं की वर्षा करते हैं. ये उन के (इंद्र के) वीर्य को बढ़ाने वाले हैं. (४)
These are dear to Som Indra. Som showers wishes. These are going to increase his (Indra's) semen. (4)