हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 15)

सामवेद: | खंड: 6
अग्निं वो देवमग्निभिः सजोषा यजिष्ठं दूतमध्वरे कृणुध्वम् । यो मर्त्येषु निध्रुविरृतावा तपुर्मूर्धा घृतान्नः पावकः ॥ (१)
हे देवगण! अग्नि सर्वत्र पूज्य हैं. आप यज्ञ में उन को दूत बना कर भेजने की कृपा कीजिए. वे मनुष्यों के मित्र और पवित्र हैं. घृत (घी) उन का अन्न है. वे तेजस्वी हैं. (१)
O Gods! Agni is revered everywhere. Please send them as messengers in the yajna. They are friends and holy to human beings. Ghee (ghee) is their food. They are stunning. (1)

सामवेद (अध्याय 15)

सामवेद: | खंड: 6
प्रोथदश्वो न यवसेऽविष्यन्यदा महः संवरणाद्व्यस्थात् । आदस्य वातो अनु वाति शोचिरध स्म ते व्रजनं कृष्णमस्ति ॥ (२)
घोड़े जैसे घास चर जाते हैं, उसी तरह अग्नि (दावाग्नि) वृक्षों को चट कर जाते हैं. वे हवा के मार्ग का अनुकरण करते हैं. उन का मार्ग पवित्र और काले धुएं वाला है. (२)
Just as horses graze grass, agni (dawaagni) devours trees. They simulate the path of the wind. Their path is holy and black smoke. (2)

सामवेद (अध्याय 15)

सामवेद: | खंड: 6
उद्यस्य ते नवजातस्य वृष्णोऽग्ने चरन्त्यजरा इधानाः । अच्छा द्यामरुषो धूम एषि सं दूतो अग्न ईयसे हि देवान् ॥ (३)
हे अग्नि! आप की शीघ्र उत्पन्न ज्वालाएं वर्षा करने के लिए तैयार हैं. आप अजर, समिधा युक्त व देवताओं के दूत हैं. आप की लपटों का धुआं स्वर्गलोक में देवताओं तक (हवि सहित) पहुंच जाता है. (३)
O agni! You are ready to rain the quickly generated flames. You are ajar, samidha yukta and messenger of the gods. The smoke of your flames reaches the gods (including Havi) in heaven. (3)

सामवेद (अध्याय 15)

सामवेद: | खंड: 6
तमिन्द्रं वाजयामसि महे वृत्राय हन्तवे । स वृषा वृषभो भुवत् ॥ (४)
इंद्र शक्तिमान हैं. वे और अधिक शक्तिशाली होने की कृपा करें. हम दुश्मनों के नाश के लिए इंद्र को और ज्यादा बलवान बनाना चाहते हैं. (४)
Indra is powerful. Please be they more powerful. We want to make Indra stronger to destroy enemies. (4)

सामवेद (अध्याय 15)

सामवेद: | खंड: 6
इन्द्रः स दामने कृत ओजिष्ठः स बले हितः । द्युम्नी श्लोकी स सोम्यः ॥ (५)
इंद्र बलिष्ठ, हितकारी व दान (देने) का कार्य करते हैं. वे स्वर्गलोक के वासी हैं. वे श्लोकों (मंत्रों) से स्तुत्य व सोमरस पीने योग्य हैं. (५)
Indra does the work of strong, beneficial and charity. They are residents of heaven. They are potable from shlokas (mantras) to praise and someras. (5)

सामवेद (अध्याय 15)

सामवेद: | खंड: 6
गिरा वज्रो न सम्भृतः सबलो अनपच्युतः । ववक्ष उग्रो अस्तृतः ॥ (६)
हे इंद्र! आप के हाथों में वज्र सुशोभित है. वाणी से आप की प्रशंसा की जाती है. आप सबल, उग्र व विस्तृत हैं. आप को कोई नहीं हरा सकता. (६)
O Indra! The thunderbolt is adorned in your hands. You are praised by speech. You are strong, fierce and detailed. No one can beat you. (6)