हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 17.3.7

अध्याय 17 → खंड 3 → मंत्र 7 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 17)

सामवेद: | खंड: 3
आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः । पितरं च प्रयन्त्स्वः ॥ (७)
हे अग्नि! आप बहुरंगी, गतिशील व (सूर्य रूप में) पूर्व दिशा में उदित होते हैं. आप पितृलोक (अंतरिक्षलोक) में प्रतिष्ठित होते हैं. (७)
O agni! You are multicolored, dynamic and (in the form of the sun) rising in the east direction. You are distinguished in the fatherland . (7)