सामवेद (अध्याय 26)
अभि वाजी विश्वरूपो जनित्रँ हिरण्ययं बिभ्रदत्कँ सुपर्णः । सूर्यस्य भानुमृतुथा वसानः परि स्वयं मेधमृज्रो जजान ॥ (१०)
हे अग्नि! आप विश्वरूप व सुपर्ण (गरुड़) जैसे वेगवान हैं. आप उत्पत्ति स्थान (यज्ञवेदी) को सोने सा चमका देते हैं. आप ऋतु के अनुकूल सूर्य व मेघ को धारण करते हैं. (१०)
O agni! You are as fast as Vishwaroop and Suparna (Garuda). You make the place of origin (yajnavedi) shine like gold. You wear the sun and cloud according to the season. (10)