हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
अचिक्रदद्वृषा हरिर्महान्मित्रो न दर्शतः । सँ सूर्येण दिद्युते ॥ (१)
सोम कामना पूरी करते हैं. वे हरे और हमारे महान मित्र हैं. वे सूर्य के समान प्रकाशित होते हैं. निचोड़ते समय वे शब्द करते हैं. (१)
Som fulfills the wish. They are green and our great friends. They are illuminated like the sun. They do words while squeezing. (1)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
आ ते दक्षं मयोभुवं वह्निमद्या वृणीमहे । पान्तमा पुरुस्पृहम् ॥ (२)
हे सोम! आप बलदाता, सुखदाता, धनदाता, शत्रुनाशक व अनेक लोगों द्वारा चाहे जाते हैं. आज यज्ञ में हम आप के उस बल को याद करते हैं. (२)
O Mon! You are a strong, happy, money giver, destroyer and many people. Today, in the yajna, we remember that force of yours. (2)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
अध्वर्यो अद्रिभिः सुतँ सोमं पवित्र आ नय । पुनीहीन्द्राय पातवे ॥ (३)
हे पुरोहितो! पत्थरों से कूटकूट कर निचोड़े गए सोमरस को आप छान कर मटकों में पहुंचाइए. इंद्र के पीने के लिए आप सोमरस को शुद्ध बनाइए. (३)
O priests! Filter the somers squeezed with stones and deliver them to the matkas. For Indra to drink, you make Someras pure. (3)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
तरत्स मन्दी धावति धारा सुतस्यान्धसः । तरत्स मन्दी धावति ॥ (४)
निचोड़ी गई सोमरस की धाराएं इंद्र को प्रसन्नता देने वाली हैं. यह सोमरस जो इंद्र को देता है, वह ऊर्ध्व (ऊंची) गति पाता है. वह सभी पापों से पार हो जाता है. (४)
The streams of someras squeezed are going to give happiness to Indra. This someras that he gives to Indra attains a higher speed. He overcomes all sins. (4)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
आ पवस्व सहस्रिणँ रयिँ सोम सुवीर्यम् । अस्मे श्रवाँसि धारय ॥ (५)
हे सोम! आप हजारों प्रकार के श्रेष्ठ धन व अन्न हमें प्रदान कीजिए. (५)
O Mon! You give us thousands of best money and food. (5)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
अनु प्रत्नास आयवः पदं नवीयो अक्रमुः । रुचे जनन्त सूर्यम् ॥ (६)
पुराने समय में लोगों ने श्रेष्ठ स्थान पाने के लिए सूर्य के समान तेजस्वी सोम को उत्पन्न किया. (६)
In the olden times, people created a bright Som like the sun to get the best place. (6)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
अर्षा सोम द्युमत्तमोऽभि द्रोणानि रोरुवत् । सीदन्योनौ योनेष्वा ॥ (७)
हे सोम! आप बहुत प्रकाशमान एवं शब्द करते हुए यज्ञ पात्र में छनते हैं. आप वन और यज्ञशालाओं में विराजिए. (७)
O Mon! You are very bright and words and filtered in the yajna vessel. You sit in the forest and yagyashalas. (7)

सामवेद (अध्याय 5)

सामवेद: | खंड: 4
वृषा सोम द्युमाँ असि वृषा देव वृषव्रतः । वृषा धर्माणि दध्रिषे ॥ (८)
हे सोम! आप बलवान, तेजस्वी व इच्छा पूर्ति के संकल्प वाले हैं. आप बल बढ़ाने वाले इन गुणों को धारण करने वाले हैं. (८)
O Mon! You are strong, bright and willing. You are going to hold these force-enhancing properties. (8)
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