हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.123.4

मंडल 1 → सूक्त 123 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 123
गृ॒हंगृ॑हमह॒ना या॒त्यच्छा॑ दि॒वेदि॑वे॒ अधि॒ नामा॒ दधा॑ना । सिषा॑सन्ती द्योत॒ना शश्व॒दागा॒दग्र॑मग्र॒मिद्भ॑जते॒ वसू॑नाम् ॥ (४)
भोग की इच्छा से युक्त एवं सारे संसार को प्रकाशित करती हुई उषा प्रतिदिन नम्र भाव से प्रत्येक घर की ओर आती है एवं इवि-रूप धन का श्रेष्ठ भाग स्वीकार कर लेती है. (४)
With a desire for enjoyment and illuminating the whole world, Usha comes to every house every day with humility and accepts the best part of the wealth. (4)