ऋग्वेद (मंडल 1)
उदी॑रतां सू॒नृता॒ उत्पुरं॑धी॒रुद॒ग्नयः॑ शुशुचा॒नासो॑ अस्थुः । स्पा॒र्हा वसू॑नि॒ तम॒साप॑गूळ्हा॒विष्कृ॑ण्वन्त्यु॒षसो॑ विभा॒तीः ॥ (६)
हे ऋत्विजो! प्रिय एवं सच्ची बातें स्तुति रूप में कहो, बुद्धि का प्रमाण देने वाले यज्ञकर्म करो तथा दीप्तिशाली अग्नि प्रज्वलित करो. ऐसा करने से विविध प्रकाश वाली उषा अंधकार से ढके हुए एवं यज्ञसाधन धनों को प्रकट करती है. (६)
Hey Ritvijo! Say dear and true things in praise, do the yajna karma that proves wisdom and ignite a glorious fire. By doing so, Usha with diverse light reveals the darkness-covered and sacrificial wealth. (6)