हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 184
ता वा॑म॒द्य ताव॑प॒रं हु॑वेमो॒च्छन्त्या॑मु॒षसि॒ वह्नि॑रु॒क्थैः । नास॑त्या॒ कुह॑ चि॒त्सन्ता॑व॒र्यो दि॒वो नपा॑ता सु॒दास्त॑राय ॥ (१)
जब उषा अंधकार का नाश करती है, तब आज के आगामी दिनों के यज्ञों में हम होता स्तुतियों द्वारा तुम्हें बुलाते हैं. हे असत्यरहित एवं स्वर्ग के नेता अश्चिनीकुमारो! तुम जहां भी रहो, मैं उत्तम दान देने वाले यजमान के कल्याण के लिए तुम्हें बुलाता हूं. (१)
When Usha destroys the darkness, in the yagnas of today's coming days, we call you by the praises. O untruthless and the leader of heaven, Aschinikumaro! Wherever you are, I call you for the welfare of the best-giving host. (1)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 184
अ॒स्मे ऊ॒ षु वृ॑षणा मादयेथा॒मुत्प॒णीँर्ह॑तमू॒र्म्या मद॑न्ता । श्रु॒तं मे॒ अच्छो॑क्तिभिर्मती॒नामेष्टा॑ नरा॒ निचे॑तारा च॒ कर्णैः॑ ॥ (२)
हे कामवर्षक अश्विनीकुमारो! सोमरस से प्रसन्न होकर तुम हमें संतुष्ट करो एवं पणियों का समूल नाश करो. तुम मेरी उन स्तुतियों को सुनो जो तुम्हें अनुकूल करने एवं तृप्ति प्रदान करने के लिए की गई हैं. हे नेताओ! तुम स्तुतियों का अन्वेषण एवं संचय करते हो. (२)
O workman Ashwinikumaro! Be pleased with the Somras, please us and destroy the panies altogether. Listen to My praises that have been made to suit you and to give you satisfaction. Hey leaders! You explore and store praises. (2)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 184
श्रि॒ये पू॑षन्निषु॒कृते॑व दे॒वा नास॑त्या वह॒तुं सू॒र्यायाः॑ । व॒च्यन्ते॑ वां ककु॒हा अ॒प्सु जा॒ता यु॒गा जू॒र्णेव॒ वरु॑णस्य॒ भूरेः॑ ॥ (३)
हे पोषक एवं असत्यहीन अश्विनीकुमारो! स्तुतिसमूह एवं कन्या के लाभ के लिए तीर के समान जल्दी पहुंचो और सूर्यपुत्री को ले आओ. वरुण संबंधी यज्ञ में जो स्तुतियां की जाती हैं, वे वास्तव में तुम्हारे ही अभिमुख जाती हैं. (३)
O nourishing and untruthless Ashwinikumaro! For the benefit of the praise group and virgo, reach as early as an arrow and bring suryaputri. The praises that are made in the yajna related to Varuna are actually oriented to you. (3)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 184
अ॒स्मे सा वां॑ माध्वी रा॒तिर॑स्तु॒ स्तोमं॑ हिनोतं मा॒न्यस्य॑ का॒रोः । अनु॒ यद्वां॑ श्रव॒स्या॑ सुदानू सु॒वीर्या॑य चर्ष॒णयो॒ मद॑न्ति ॥ (४)
हे मधुपूर्ण पात्र वाले अश्विनीकुमारो! मान्य स्तोता अगस्त्य की स्तुति सुनकर अपना प्रसिद्ध दान हमें दो. हे शोभनदानशीलो! अन्न की इच्छा से पुरोहित शक्तिशाली यजमान के कल्याण के लिए तुम्हारे साथ प्रसन्न हो. (४)
O Ashwinikumaro with a meek character! Give us your famous donation by listening to the praises of the valid hymn Agastya. O you who are sordid! May the priest be pleased with you for the welfare of the mighty host by the will of the food. (4)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 184
ए॒ष वां॒ स्तोमो॑ अश्विनावकारि॒ माने॑भिर्मघवाना सुवृ॒क्ति । या॒तं व॒र्तिस्तन॑याय॒ त्मने॑ चा॒गस्त्ये॑ नासत्या॒ मद॑न्ता ॥ (५)
हे धन के स्वामी अश्विनीकुमारो! तुम्हारे सम्मान के लिए हव्य के साथ ही इस पाप विनाशकारी स्तोत्र की रचना की गई है. है सत्यस्वरूपो! मुझ अगस्त्य ऋषि से प्रसन्न होकर पुत्रलाभ एवं अपने हित के लिए यज्ञस्थल में आओ. (५)
O Lord of wealth Ashwinikumaro! For your honor, this sin-destructive hymn has been created along with the havya. It's true! Please me from the sage Agastya, come to the yagnasthala for the benefit of my son and for your own benefit. (5)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 184
अता॑रिष्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्य प्रति॑ वां॒ स्तोमो॑ अश्विनावधायि । एह या॑तं प॒थिभि॑र्देव॒यानै॑र्वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥ (६)
हे अश्विनीकुमारो! तुम्हारी कृपा से हम अंधकार को पार करेंगे. इसीलिए तुम्हारे लिए ये स्तुतियां बनाई गई हैं. तुम देवों के मार्ग से यज्ञ में आओ, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घ आयु प्राप्त कर सकें. (६)
O Ashwinikumaro! By your grace we will overcome the darkness. That's why these praises have been made for you. You come to the yagna by the way of the gods, so that we may gain food, strength and long life. (6)