ऋग्वेद (मंडल 1)
यं रक्ष॑न्ति॒ प्रचे॑तसो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । नू चि॒त्स द॑भ्यते॒ जनः॑ ॥ (१)
उत्तम ज्ञान से संपन्न वरुण, मित्र और अर्यमा देवता जिसकी रक्षा करते हैं, वह शीघ्र ही सब शत्रुओं को मार डालता है. (१)
The one who is protected by Varuna, friends and the god of Aryama, endowed with the best knowledge, soon kills all the enemies. (1)
ऋग्वेद (मंडल 1)
यं बा॒हुते॑व॒ पिप्र॑ति॒ पान्ति॒ मर्त्यं॑ रि॒षः । अरि॑ष्टः॒ सर्व॑ एधते ॥ (२)
वरुणादि देव जिस यजमान को अपने हाथ से धनसंपन्न करते एवं हिंसकों से बचाते हैं, वह सबसे सुरक्षित रहकर उन्नति करता है. (२)
The host whom Varunadi Dev makes money with his own hands and protects from the violent, he prospers by staying safe. (2)
ऋग्वेद (मंडल 1)
वि दु॒र्गा वि द्विषः॑ पु॒रो घ्नन्ति॒ राजा॑न एषाम् । नय॑न्ति दुरि॒ता ति॒रः ॥ (३)
वरुणादि राजा अपने यजमान के सामने स्थित श्रु का दुर्ग तोड़कर शत्रुओं का नाश करते हैं. इसके पश्चात् वे यजमान के पापों को भी नष्ट कर देते हैं. (३)
Varunadi king destroys the enemies by breaking the fort of Shrew in front of his host. After that, they also destroy the sins of the host. (3)
ऋग्वेद (मंडल 1)
सु॒गः पन्था॑ अनृक्ष॒र आदि॑त्यास ऋ॒तं य॒ते । नात्रा॑वखा॒दो अ॑स्ति वः ॥ (४)
हे आदित्यो! तुम जिस मार्ग से यज्ञ में जाते हो, वह सुगम और निष्कंटक है. इस यज्ञ में ऐसा हवि नहीं, जिससे तुम्हें घृणा हो. (४)
Hey Aditya! The path by which you go to the yagna is easy and unblemished. There is no such thing in this yajna that you hate. (4)
ऋग्वेद (मंडल 1)
यं य॒ज्ञं नय॑था नर॒ आदि॑त्या ऋ॒जुना॑ प॒था । प्र वः॒ स धी॒तये॑ नशत् ॥ (५)
हे नेतारूप आदित्यो! तुम सरल मार्ग से जिस यज्ञ में आते हो, उस में तुम्हें सोमरस का उपभोग मिले. (५)
O leader, Adityas! In the yajna by which you come in the simple way, you get the consumption of somras. (5)
ऋग्वेद (मंडल 1)
स रत्नं॒ मर्त्यो॒ वसु॒ विश्वं॑ तो॒कमु॒त त्मना॑ । अच्छा॑ गच्छ॒त्यस्तृ॑तः ॥ (६)
तुम्हारे द्वारा अनुगृहीत यजमान तुम्हारे सामने ही सभी रमणीय धन प्राप्त करता है. कोई उसकी हिंसा नहीं कर सकता, अपितु वह अपने समान संतान भी प्राप्त करता है. (६)
The host you follow receives all the delightful wealth in front of you. No one can do him violence, but he also gets the same children as himself. (6)
ऋग्वेद (मंडल 1)
क॒था रा॑धाम सखायः॒ स्तोमं॑ मि॒त्रस्या॑र्य॒म्णः । महि॒ प्सरो॒ वरु॑णस्य ॥ (७)
हे ऋत्विज् मित्रो! हम मित्र, अर्यमा और वरुण के महत्त्व के अनुरूप स्तोत्र कब प्राप्त करेंगे? (७)
O you friends! When will we get the hymns to suit the importance of friends, Aryama and Varuna? (7)
ऋग्वेद (मंडल 1)
मा वो॒ घ्नन्तं॒ मा शप॑न्तं॒ प्रति॑ वोचे देव॒यन्त॑म् । सु॒म्नैरिद्व॒ आ वि॑वासे ॥ (८)
हे मित्रादि देवो! देवों की कामना करने वाले यजमान को मारने वाले एवं कटु वचन बोलने वाले मनुष्य के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कहता. मैं तो तुम्हें धन से तृप्त करता हूं. (८)
O friends, god! I say nothing against the man who kills the host who wishes for the gods and who speaks harsh words. I am making you satisfied with wealth. (8)