हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
वि॒शोवि॑शो वो॒ अति॑थिं वाज॒यन्तः॑ पुरुप्रि॒यम् । अ॒ग्निं वो॒ दुर्यं॒ वचः॑ स्तु॒षे शू॒षस्य॒ मन्म॑भिः ॥ (१)
हे अन्नाभिलाषी ऋत्विजो एवं यजमानो! तुम सारी प्रजा के अतिथि एवं बहुतों के प्रिय अग्नि की सेवा स्तुति द्वारा करो. मैं तुम्हारी सुखप्राप्ति के लिए सुंदर स्तुतियों द्वारा गूढ़वचन बोलता हूं. (१)
O annibhilashi ritvizo and hosts! Serve the agni, the guests of all the people and the beloved of many, by praise. I speak the deepest word through beautiful praises for your happiness. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
यं जना॑सो ह॒विष्म॑न्तो मि॒त्रं न स॒र्पिरा॑सुतिम् । प्र॒शंस॑न्ति॒ प्रश॑स्तिभिः ॥ (२)
लोग हव्य धारण करके एवं घी का हवन करते हुए अग्नि की स्तुति सूर्य के समान करते हैं. (२)
People praise agni like the sun by wearing a havan and performing a havan of ghee. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
पन्यां॑सं जा॒तवे॑दसं॒ यो दे॒वता॒त्युद्य॑ता । ह॒व्यान्यैर॑यद्दि॒वि ॥ (३)
अग्नि स्तोता के यज्ञकर्म की प्रशंसा करने वाले, जातवेद तथा यज्ञ में डाले गए हव्य को स्वर्ग में ले जाने वाले हैं. (३)
Those who admire the yajnakarma of agni stota are going to take the jata veda and the havan inserted in the yajna to heaven. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
आग॑न्म वृत्र॒हन्त॑मं॒ ज्येष्ठ॑म॒ग्निमान॑वम् । यस्य॑ श्रु॒तर्वा॑ बृ॒हन्ना॒र्क्षो अनी॑क॒ एध॑ते ॥ (४)
मैं पापों का भली प्रकार नाश करने वाले, प्रशंसनीय एवं मानवहितकारी उन अग्नि की स्तुति करता हूं, जिनकी ज्वालाओं में श्रुतर्वा एवं महान्‌ ऋक्षपुत्र यज्ञकर्म करते हैं. (४)
I praise the well-repressed, praiseworthy and human-benevolent agni of sins, in whose flames the sons of Shrutrva and the great Riksh perform yajnakarma. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
अ॒मृतं॑ जा॒तवे॑दसं ति॒रस्तमां॑सि दर्श॒तम् । घृ॒ताह॑वन॒मीड्य॑म् ॥ (५)
मैं मरणरहित, जातवेद, अंधकार का नाश करने वाले, घृत द्वारा हवन करने योग्य एवं स्तुतिपात्र अग्नि के पास जाता हूं. (५)
I go to the agni without dying, the Jataveda, the destroyer of darkness, the one who is worthy of being worshipped by the aphoria and the praiseworthy. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
स॒बाधो॒ यं जना॑ इ॒मे॒३॒॑ऽग्निं ह॒व्येभि॒रीळ॑ते । जुह्वा॑नासो य॒तस्रु॑चः ॥ (६)
अभिलाषायुक्त अध्वर्यु आदि यज्ञ करते हुए एवं हाथ में स्रुच लेकर हव्यों द्वारा अग्नि की स्तुति करते हैं. (६)
The desireful adhwaryu etc. praise the agni through the havans by performing yajna and taking a scratch in their hands. (6)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
इ॒यं ते॒ नव्य॑सी म॒तिरग्ने॒ अधा॑य्य॒स्मदा । मन्द्र॒ सुजा॑त॒ सुक्र॒तोऽमू॑र॒ दस्माति॑थे ॥ (७)
प्रसन्न, शोभन-जन्म वाले, शोभन-यज्ञ वाले, बुद्धिमान्‌, दर्शनीय एवं अतिथि के समान पूज्य अग्नि! मैं तुम्हें नवीन स्तुति अर्पित करता हूं. (७)
Happy, shobhan-born, shobhan-yajna-yaagya, wise, visible and a guest-like worshipable agni! I offer you new praise. (7)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
सा ते॑ अग्ने॒ शंत॑मा॒ चनि॑ष्ठा भवतु प्रि॒या । तया॑ वर्धस्व॒ सुष्टु॑तः ॥ (८)
हे अग्नि! वह स्तुति तुम्हें अत्यंत सुखकर, अधिक अन्न देने वाली एवं प्रिय हो. तुम मेरी स्तुति द्वारा भली-भांति स्तुत होकर बढ़ो. (८)
O agni! May that praise be very pleasing to you, giving you more food and dearer. You grow well praised by My praise. (8)
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