हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 40
पु॒ना॒नो अ॑क्रमीद॒भि विश्वा॒ मृधो॒ विच॑र्षणिः । शु॒म्भन्ति॒ विप्रं॑ धी॒तिभिः॑ ॥ (१)
निचुड़ते हुए एवं सबको देखने वाले सोम सभी हिंसक शत्रुओं को लांघ गए. लोग मेधावी सोम को स्तुतियों द्वारा अलंकृत करते हैं. (१)
Mon, who was helpless and watching everyone, overcame all the violent enemies. People adorn the meritorious Mon with praises. (1)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 40
आ योनि॑मरु॒णो रु॑ह॒द्गम॒दिन्द्रं॒ वृषा॑ सु॒तः । ध्रु॒वे सद॑सि सीदति ॥ (२)
लाल रंग वाले सोम द्रोणकलश में जा रहे हैं. इसके बाद अभिलाषापूरक एवं निचुड़े हुए सोम इंद्र के समीप जाते हैं एवं निश्चित स्थान पर बैठते हैं. (२)
The red colored mons are going to Dronakalash. After this, the wishful and the relaxed Som goes near Indra and sits in a certain place. (2)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 40
नू नो॑ र॒यिं म॒हामि॑न्दो॒ऽस्मभ्यं॑ सोम वि॒श्वतः॑ । आ प॑वस्व सह॒स्रिण॑म् ॥ (३)
हे निचुड़े हुए सोम! तुम चारों ओर से हमारे लिए अगणित एवं महान्‌ धन लाओ. (३)
O unsettled Mon! Bring us countless and great wealth from all around. (3)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 40
विश्वा॑ सोम पवमान द्यु॒म्नानी॑न्द॒वा भ॑र । वि॒दाः स॑ह॒स्रिणी॒रिषः॑ ॥ (४)
हे निचुड़ते हुए दीप्तिशाली सोम! तुम बहुत प्रकार का अन्न हमारे पास लाओ एवं हमें हजारों प्रकार का अन्न दो. (४)
O wretched radiant Mon! Bring us many kinds of food and give us thousands of kinds of food. (4)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 40
स नः॑ पुना॒न आ भ॑र र॒यिं स्तो॒त्रे सु॒वीर्य॑म् । ज॒रि॒तुर्व॑र्धया॒ गिरः॑ ॥ (५)
हे निचुड़ते हुए सोम! तुम हमारे स्तोताओं के लिए शोभन पुत्र वाला धन लाओ तथा उनकी स्तुतियों को बढ़ाओ. (५)
Oh, lingering Mon! You bring wealth of the Son of Adorn to our stothas and increase their praises. (5)

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 40
पु॒ना॒न इ॑न्द॒वा भ॑र॒ सोम॑ द्वि॒बर्ह॑सं र॒यिम् । वृष॑न्निन्दो न उ॒क्थ्य॑म् ॥ (६)
हे निचुड़ते हुए सोम! तुम हमारे लिए द्यावा-पृथिवी में बढ़े हुए धन को लाओ. हे अभिलाषापूरक सोम! तुम हमें स्तुति के योग्य धन दो. (६)
Oh, lingering Mon! You bring us the increased wealth in the earth. He is a wishy Mon! You give us the riches worthy of praise. (6)