सामवेद (अध्याय 10)
न दुष्टुतिर्द्रविणोदेषु शस्यते न स्रेधन्तँ रयिर्नशत् । सुशक्तिरिन्मघवं तुभ्यं मावते देष्णं यत्पार्ये दिवि ॥ (७)
हे इंद्र! सोमयाग में सशक्त (उत्तम) उपासकों को आप उचित (उपयुक्त) धन प्रदान करते हैं. जो लोग दानदाता की निंदा करते हैं, जो लोग अच्छा काम करने वालों की निंदा करते हैं, ऐसे लोगों पर आप अपनी कृपा मत कीजिए. (७)
O Indra! You provide proper (suitable) money to the strong (best) worshippers in Somayag. Those who condemn donors, those who condemn those who do good work, don't be kind to such people. (7)