हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
तिस्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनवः । हरिरेति कनिक्रदत् ॥ (१)
यजमान तीन वाणियां उचारते हैं. उन वाणियों को सुन कर हरे रंग का सोमरस दुधारू गाय के रंभाने जैसी आवाज करता हुआ प्रवाहित होता है. (१)
The host utters three vows. Hearing those words, the green sommers flows, making a sound like a milch cow's rambhane. (1)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
अभि ब्रह्मीरनूषत यह्वीरृतस्य मातरः । मर्जयन्तीर्दिवः शिशुम् ॥ (२)
हम यजमान स्वर्गलोक के शिशु सोम को परिष्कृत करने के लिए मंत्र उचारते हैं. सत्य की माता से सोम उत्पन्न हुए हैं. ब्रह्मज्ञानी सोम की उपासना करते हैं. (२)
We chant mantras to refine the infant Soma of the host heaven. Soma is born from the mother of truth. Brahmagyani worships Soma. (2)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
रायः समुद्राँश्चतुरोऽस्मभ्यँ सोम विश्वतः । आ पवस्व सहस्रिणः ॥ (३)
हे सोम! आप हमें सभी प्रकार के सुख दीजिए. आप हमें सभी प्रकार के धन दीजिए. आप हमारी हजारों इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रवाहित होने की कृपा कीजिए. (३)
O Mon! You give us all kinds of happiness. You give us all kinds of money. Please flow to fulfill our thousands of wishes. (3)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
सुतासो मधुमत्तमाः सोमा इन्द्राय मन्दिनः । पवित्रवन्तो अक्षरं देवान्गच्छन्तु वो मदाः ॥ (४)
हे सोम! आप मधुमान हैं. हम आप के पुत्र हैं. आप इंद्र को प्रसन्न करने के लिए प्रवाहित होइए. आप पवित्र हैं और कभी क्षरित (नष्ट) नहीं होते. आप देवताओं को आनंद प्रदान करने के लिए उन के पास जाने की कृपा कीजिए. (४)
O Mon! You are Madhuman. We are your sons. You flow to please Indra. You are holy and never destroyed. Please go to the gods to give them pleasure. (4)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
इन्दुरिन्द्राय पवत इति देवासो अब्रुवन् । वाचस्पतिर्मखस्यते विश्वस्येशान ओजसाः ॥ (५)
हे इंद्र! उपासक आप के लिए सोमरस स्वच्छ करते हैं. आप सब के ईश्वर, ओजस्वी और वाचस्पति हैं. यज्ञ में सोमरस का उपयोग किया जाता है. (५)
O Indra! Worshippers clean somers for you. You are the God, energetic and vachaspati of all. Someras is used in yajna. (5)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
सहस्रधारः पवते समुद्रो वाचमीङ्खयः । सोमस्पती रयीणाँ सखेन्द्रस्य दिवेदिवे ॥ (६)
हे सोम! आप हजार घर वाले हैं. आप पवित्र व इंद्र के सखा हैं. आप जलवान व धनवान हैं. आप प्रतिदिन द्रोणकलश में प्रवाहित होते हैं. (६)
O Mon! You are a thousand householders. You are holy and the friend of Indra. You are watery and rich. You flow into Dronakalsh every day. (6)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
पवित्रं ते विततं ब्रह्मणस्पते प्रभुर्गात्राणि पर्येषि विश्वतः । अतप्ततनूर्न तदामो अश्नुते श‍ृतास इद्वहन्तः सं तदाशत ॥ (७)
हे सोम! आप पवित्र हैं. आप ब्रह्मज्ञान के स्वामी व देह के मालिक हैं. आप समर्थो पर कृपा करते हैं. यज्ञ करने वाले ही आप तक पहुंच पाते हैं. जिस ने तन नहीं तपाया, वह आप से कुछ (सुखकृपा) नहीं पा सकता. (७)
O Mon! You are holy. You are the master of Brahmagyan and the master of the body. You are kind to Samartho. Only those who perform yajna are able to reach you. He who has not heated his body cannot get anything (happiness) from you. (7)

सामवेद (अध्याय 10)

सामवेद: | खंड: 5
तपोष्पवित्रं विततं दिवस्पदेऽर्चन्तो अस्य तन्तवो व्यस्थिरन् । अवन्त्यस्य पवीतारमाशवो दिवः पृष्ठमधि रोहन्ति तेजसा ॥ (८)
हे सोम! आप पवित्र हैं. आप दुश्मनों को तपाने के लिए स्वर्गलोक में फैले हुए हैं. आप की किरणें चमकीली हैं. ये चमकीली किरणें स्वर्गलोक के पीछे स्थित हैं और यजमानों की रक्षा करती हैं. (८)
O Mon! You are holy. You are spread across paradise to tap enemies. Your rays are bright. These bright rays are located behind paradise and protect the hosts. (8)
Page 1 of 2Next →