हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
पवस्व वृष्टिमा सु नोऽपामूर्मिं दिवस्परि । अयक्ष्मा बृहतीरिषः ॥ (१)
हे सोम! आप पवित्र व दिव्य, जल को लहराएं. आप अक्षय स्वास्थ्य प्रदान करने की कृपा कीजिए. (१)
O Mon! You wave the water, pure and divine. Please provide you with renewable health. (1)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम् ॥ (२)
हे सोम! आप उन दिव्य जलधाराओं से पवित्र होइए, जिन से दुधारू गाएं हमारे यहां आ सकें, धनधान्य हमारे घर पहुंच सकें. (२)
O Mon! You should be purified from those divine streams, through which milch cows can come to our place, wealth can reach our home. (2)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
घृतं पवस्व धारया यज्ञेषु देववीतमः । अस्मभ्यं वृष्टिमा पव ॥ (३)
हे सोम! आप देवताओं द्वारा चाहे गए घृत की पवित्र धाराएं चुआइए. आप हमारे लिए मूसलाधार बरसात कीजिए. (३)
O Mon! You should choose the holy streams of ghrit desired by the gods. You rain heavily for us. (3)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
स न ऊर्जे व्या३व्ययं पवित्रं धाव धारया । देवासः श‍ृणवन्हि कम् ॥ (४)
हे सोम! आप हमें ऊर्जा प्रदान कीजिए. आप अव्यय व पवित्र धारावान हैं. आप धाराओं से दौड़ कर कलश में प्रवेश कीजिए. आप की आवाज सुन कर देवतागण आनंदित हों. (४)
O Mon! You give us energy. You are unlovable and holy. You run through the streams and enter the urn. May the gods rejoice to hear your voice. (4)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
पवमानो असिष्यदद्रक्षाँस्यपजङ्घनत् । प्रत्नवद्रोचयन्रुचः ॥ (५)
पवित्र, शत्रुनाशक, प्रकाशमान और छना हुआ सोमरस द्रोणकलश में झरता है. (५)
The holy, hostile, luminous and filtered Someras flows in Dronakalash. (5)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
प्रत्यस्मै पिपीषते विश्वानि विदुषे भर । अरङ्गमाय जग्मयेऽपश्चादध्वने नरः ॥ (६)
हे यजमानो! इंद्र यज्ञ के संचालक, विश्व के ज्ञाता, अग्रणी, प्रगतिशील व सोमरस पान के इच्छुक हैं. आप इंद्र के लिए सोमरस को द्रोणकलश में भर दीजिए. (६)
O hosts! Indra is the operator of yajna, the knower of the world, the pioneer, progressive and interested in drinking someras. You fill someras in dronakalash for Indra. (6)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
एमेनं प्रत्येतन सोमेभिः सोमपातमम् । अमत्रेभिरृजीषिणमिन्द्रँ सुतेभिरिन्दुभिः ॥ (७)
हे यजमानो! सोमरस रसीला है. आप उसे परिष्कृत कीजिए. इंद्र बहुत अधिक सोमरस पीने वाले हैं. वे बहुरुचि से सोमरस पीते हैं. आप इंद्र के पास जा कर प्रार्थना कीजिए. (७)
O hosts! Somerus is succulent. You refine it. Indra is a drinker of sommers. They drink somers with great interest. You go to Indra and pray. (7)

सामवेद (अध्याय 19)

सामवेद: | खंड: 1
यदी सुतेभिरिन्दुभिः सोमेभिः प्रतिभूषथ । वेदा विश्वस्य मेधिरो धृषत्तन्तमिदेषते ॥ (८)
हे यजमानो! आप चमकीला, रसीला सोमरस ले कर इंद्र के पास जाइए. वे शरणागत की मनोकामना जान लेते हैं. वे उन की इच्छा पूरी करते हैं. वे विघ्न, क्लेश दूर करते हैं. (८)
O hosts! You take a bright, succulent somersa and go to Indra. They know the wishes of the refuge. They fulfill their wishes. They remove obstacles, tribulations. (8)
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