सामवेद (अध्याय 19)
विभ्राड् बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविह्रुतम् । वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजाः पिपर्ति बहुधा वि राजति ॥ (१)
सूर्य प्रकाशमान हैं. वे प्रजा का पालन करते हैं, यजमान को निरोग बनाते हैं, लंबी आयु देते हैं, हवा बहाते हैं व सब के रक्षक हैं. इंद्र कई रूपों में सुशोभित हो रहे हैं. वे भरपूर सोमपान करें. (१)
The sun is shining. They follow the people, make the host healthy, give long life, blow wind and are the protectors of all. Indra is adorned in many forms. They should drink a lot. (1)
सामवेद (अध्याय 19)
विभ्राड् बृहत्सुभृतं वाजसातमं धर्मं दिवो धरुणे सत्यमर्पितम् । अमित्रहा वृत्रहा दस्युहन्तमं ज्योतिर्जज्ञे असुरहा सपत्नहा ॥ (२)
सूर्य बहुत प्रकाशमान व अन्न और बलदाता हैं. वे धर्म से स्वर्गलोक को धारण करते हैं, अमित्रो के नाशक हैं, वृत्रहंता हैं. वे शत्रुओं, राक्षसों व दुष्टों के नाशक हैं. वे सर्वत्र अपना प्रकाश फैलाते हैं. (२)
The sun is very bright and gives food and strength. They imbibe heaven by dharma, are the destroyers of Amitro, they are greater. They are the destroyers of enemies, demons and the wicked. They spread their light everywhere. (2)
सामवेद (अध्याय 19)
इदँ श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरुत्तमं विश्वजिद्धनजिदुच्यते बृहत् । विश्वभ्राड् भ्राजो महि सूर्यो दृश उरु पप्रथे सह ओजो अच्युतम् ॥ (३)
सूर्य ज्योतिमान और क्षमतावान हैं. वे पूरी पृथ्वी को प्रकाशित करते हैं. वे अच्युत हैं. वे बल के साथ रहते हैं. वे धन जीतने वाले हैं. उन की ज्योति विशाल, ज्योतियों में सर्वश्रेष्ठ एवं विश्व को जीतने वाली है. (३)
The Sun is light and capable. They illuminate the whole earth. They are unsung. They live with force. They are going to win money. His light is huge, the best of the lights and the winner of the world. (3)
सामवेद (अध्याय 19)
इन्द्र क्रतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा । शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीव ज्योतिरशीमहि ॥ (४)
हे इंद्र! पिता जैसे पुत्रों का लालनपालन करता है, वैसे ही आप हमारा पोषण कीजिए. आप हमें यज्ञ के श्रेष्ठ फल प्रदान कीजिए. हम जीवों को आप दिव्य ज्योति दीजिए. हम और अनेक लोग सहायता के लिए आप को पुकारते रहते हैं. (४)
O Indra! Just as the father nurtures sons, so you nurture us. You give us the best fruits of yajna. Give you divine light to us creatures. We and many people keep calling on you for help. (4)
सामवेद (अध्याय 19)
मा नो अज्ञाता वृजना दुराध्यो३ माशिवासोऽव क्रमुः । त्वया वयं प्रवतः शश्वतीरपोऽति शूर तरामसि ॥ (५)
हे इंद्र! जिन का आनाजाना आज्ञात हो, जो पापाचारी हों, जो दुर्बुद्धि हों वे हमारा कुछ न बिगाड़ सकें. आप हमारी रक्षा कीजिए. अपने संरक्षण में हमें अनेक विघ्न रूपी प्रवाहो से पार पहुंचाइए. (५)
O Indra! Those who are allowed to come, those who are papacharis, those who are foolish, they can not harm us. You protect us. Under your protection, overcome many obstacles in the flow of obstacles. (5)
सामवेद (अध्याय 19)
अद्याद्या श्वःश्व इन्द्र त्रास्व परे च नः । विश्वा च नो जरितॄन्त्सत्पते अहा दिवा नक्तं च रक्षिषः ॥ (६)
हमें आज भी व कल भी इंद्र संरक्षित करें. वे दिनरात हमारी रक्षा करें. वे विश्वपति और सज्जनों के पालनहार हैं. (६)
May Indra protect us even today and tomorrow. Let them protect us day and night. He is the sustainer of vishwapati and gentlemen. (6)
सामवेद (अध्याय 19)
प्रभङ्गी शूरो मघवा तुवीमघः सम्मिश्लो विर्याय कम् । उभा ते बाहू वृषणा शतक्रतो नि या वज्रं मिमिक्षतुः ॥ (७)
हे इंद्र! आप क्षमतावान हैं. आप सैकड़ों काम करते हैं. आप की भुजाएं वज्र धारण करती हैं. आप शत्रुनाशक, सर्वव्यापक व ऐश्वर्यशाली हैं. (७)
O Indra! You are capable. You do hundreds of jobs. Your arms wear thunderbolts. You are hostile, omnipresent and glorious. (7)