हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
पवमाना असृक्षत सोमाः शुक्रास इन्दवः । अभि विश्वानि काव्या ॥ (१)
हे सोम! आप का रस पवित्र व चमकीला है. उसे सभी काव्यों (वेद मंत्रों) के साथ संस्कारित किया जाता है. (१)
O Mon! Your juice is pure and bright. He is cultured with all the poems (Veda mantras). (1)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि ॥ (२)
हे सोम! आप का रस पवित्र और वह स्वर्गलोक से धरती के उच्च शिखर को स्पर्श करता हुआ बहता है. (२)
O Mon! Your juice is pure and it flows from heaven touching the high peak of the earth. (2)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
पवमानास आशवः शुभ्रा असृग्रमिन्दवः । घ्नन्तो विश्वा अप द्विषः ॥ (३)
हे सोम! आप का रस पवित्र और चमकीला है. वह (स्वास्थ्य संबंधी) सभी गड़बड़ियों का नाश करता है. आप जल्दी द्रोणकलश में पधारते हैं. (३)
O Mon! Your juice is pure and bright. He destroys all (health) disturbances. You get to Dronalash quickly. (3)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
तोशा वृत्रहणा हुवे सजित्वानापराजिता । इन्द्राग्नी वाजसातमा ॥ (४)
हे इंद्र! हे अग्नि! आप वृत्रनाश से संतोष करते हैं. आप को कोई पराजित नहीं कर सकता. आप उपासकों को प्रचुर धन देते हैं. हम आप की उपासना करते हैं. (४)
O Indra! O agni! You are satisfied with vritranash. No one can defeat you. You give abundant wealth to worshippers. We worship you. (4)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः । इन्द्राग्नी इष आ वृणे ॥ (५)
हे इंद्र! हे अग्नि! हम मनोकामना पूर्ति के लिए आप का वरण करते हैं. हम वैदिक मंत्रों से व साम गागा कर आप की उपासना करते हैं. (५)
O Indra! O agni! We choose you to fulfill your wishes. We worship you with Vedic mantras and singing. (5)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम् । साकमेकेन कर्मणा ॥ (६)
हे इंद्र! हे अग्नि! दासों और उन की पत्नियों के नगर आप ने एक साथ एक कार्य (युद्ध) से ही कंपकंपा कर नष्ट कर दिए. हम आप दोनों की स्तुति करते हैं. (६)
O Indra! O agni! The cities of slaves and their wives were destroyed by shivering from one act (war) together. We praise both of you. (6)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
उप त्वा रण्वसन्दृशं प्रयस्वन्तः सहस्कृत । अग्ने ससृज्महे गिरः ॥ (७)
हे अग्नि! आप (अरणियों में) रगड़ से पैदा होते हैं. आप दर्शनीय हैं. हम वाणी से आप की स्तुति करते हैं. हम आप की समीपता चाहते हैं. हम आप की उपासना करते हैं. (७)
O agni! You are born by rubbing (in the arrays). You are visible. We praise you with speech. We want your proximity. We worship you. (7)

सामवेद (अध्याय 24)

सामवेद: | खंड: 4
उप च्छायामिव घृणेरगन्म शर्म ते वयम् । अग्ने हिरण्यसन्दृशः ॥ (८)
हे अग्नि! आप सोने की तरह चमकीले हैं. हम आप से उसी प्रकार सुख पाते हैं, जिस प्रकार लोग गरमी में छाया से पाते हैं. (८)
O agni! You are as bright as gold. We get happiness from you in the same way as people get from the shade in summer. (8)
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