हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
अग्निः प्रत्नेन जन्मना शुम्भानस्तन्वा३ँ स्वाम् । कविर्विप्रेण ववृधे ॥ (१)
हे अग्नि! आप प्रकाशमान व मेधावी हैं. पुराने स्तोत्रों से यजमान आप को प्रज्वलित कर के आप का विस्तार करते हैं. (१)
O agni! You are bright and meritorious. With old hymns, the hosts light you and expand you. (1)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
ऊर्ज्जो नपातमा हुवेऽग्निं पावकशोचिषम् । अस्मिन्यज्ञे स्वध्वरे ॥ (२)
हे अग्नि! हम अपने इस यज्ञ में अग्नि को आमंत्रित करते हैं. आप पवित्र व प्रकाशमान हैं. आप ऊर्जा को नीचे नहीं गिरने देते हैं. (२)
O agni! We invite agni to our yagna. You are holy and bright. You don't let the energy fall down. (2)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
स नो मित्रमहस्त्वमग्ने शुक्रेण शोचिषा । देवैरा सत्सि बर्हिषि ॥ (३)
हे अग्नि! आप अपनी चमकीली लपटों से अन्य देवताओं के साथ कुश के आसन पर विराजिए. आप हमारे मित्र हैं. (३)
O agni! You sit on the seat of Kush with other gods with your bright flames. You are our friend. (3)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
उत्ते शुष्मासो अस्थू रक्षो भिन्दन्तो अद्रिवः । नुदस्व याः परिस्पृधः ॥ (४)
हे सोम! पत्थरों से कूट कर आप का रस निकाला जाता है. आप की उमड़ती हुई लहरों से राक्षसों का नाश होता है. जो हम से प्रतिस्पर्धा करते हैं, आप उन शत्रुओं का नाश करने की कृपा कीजिए. (४)
O Mon! Your juice is extracted by crushing with stones. Demons are destroyed by the rising waves of you. Those who compete with us, please destroy those enemies. (4)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
अया निजघ्निरोजसा रथसङ्गे धने हिते । स्तवा अबिभ्युषा हृदा ॥ (५)
हे सोम! आप सामर्थ्यवान व शत्रुनाशक हैं, रथ को साथ ले कर शत्रुओं को नष्ट कीजिए. हम हृदय से आप से धन देने के लिए अनुरोध करते हैं. (५)
O Mon! You are powerful and destroyers, take the chariot along and destroy the enemies. We sincerely request you to give money. (5)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
अस्य व्रतानि नाधृषे पवमानस्य दूढ्या । रुज यस्त्वा पृतन्यति ॥ (६)
हे सोम! आप पवित्र हैं. आप के दृढ़ व्रतों से दुष्ट राक्षस प्रगति नहीं कर सकते. जो शन्रु युद्ध करना चाहते हैं, आप उन शत्रुओं का नाश कीजिए. (६)
O Mon! You are holy. Evil demons cannot progress with your strong fasts. Those who want to fight, you destroy those enemies. (6)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
तँ हिन्वन्ति मदच्युतँ हरिं नदीषु वाजिनम् । इन्दुमिन्द्राय मत्सरम् ॥ (७)
सोमरस मद बरसाने वाला, स्फूर्तिदायक व हरी कांति वाला है. इंद्र हेतु सोम को नदी के जल से प्रेरित किया जाता है. (७)
Someras is a rainy, energizing and green radiant. For Indra, Soma is inspired by the water of the river. (7)

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
आ मन्द्रैरिन्द्र हरिभिर्याहि मयूररोमभिः । मा त्वा के चिन्नि येमुरिन्न पाशिनोऽति धन्वेव ताँ इहि ॥ (८)
हे इंद्र! आप के घोड़े मनोहर हैं. उन के बाल मोरपंख जैसे हैं. आप उन घोड़ों सहित यज्ञ में पधारने की कृपा कीजिए. शिकारी आप की राह में जाल न फैला सकें, अतः आप उन्हें रेगिस्तान में पहुंचा दीजिए. (८)
O Indra! Your horses are alluring. Their hair is like peacock feathers. Please come to the yagna with those horses. The hunters cannot spread the net in your path, so you take them to the desert. (8)
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