ऋग्वेद (मंडल 1)
आ त्वा॒ जुवो॑ रारहा॒णा अ॒भि प्रयो॒ वायो॒ वह॑न्त्वि॒ह पू॒र्वपी॑तये॒ सोम॑स्य पू॒र्वपी॑तये । ऊ॒र्ध्वा ते॒ अनु॑ सू॒नृता॒ मन॑स्तिष्ठतु जान॒ती । नि॒युत्व॑ता॒ रथे॒ना या॑हि दा॒वने॒ वायो॑ म॒खस्य॑ दा॒वने॑ ॥ (१)
हे वायु! तुम्हें शीघ्रगामी एवं शक्तिशाली अश्व सबसे प्रथम सोमपान के लिए यज्ञ में ले आवें. तुम पहले के समान सोमपान करते हो. तुम्हारे मन के अनुकूल एवं सच्ची हमारी स्तुति तुम्हारे गुणों का वर्णन करती है, वह तुम्हें सदा प्रसन्न करती रहे. यज्ञ में दिए हुए द्रव्य को स्वीकारने एवं हमें वांछित फल देने के हेतु रथ से शीघ्र आओ. तुम्हारे रथ में नियुत नामक घोड़े जुते हैं. (१)
O air! Let you bring the fast-moving and powerful horse to the yagna for the first sompan. You do the same sompan as before. Our praise, which is compatible with your mind and true, describes your qualities, may it please you forever. Come quickly from the chariot to accept the substance given in the yajna and give us the desired fruit. In your chariot there are horses called Niyut. (1)
ऋग्वेद (मंडल 1)
मन्द॑न्तु त्वा म॒न्दिनो॑ वाय॒विन्द॑वो॒ऽस्मत्क्रा॒णासः॒ सुकृ॑ता अ॒भिद्य॑वो॒ गोभिः॑ क्रा॒णा अ॒भिद्य॑वः । यद्ध॑ क्रा॒णा इ॒रध्यै॒ दक्षं॒ सच॑न्त ऊ॒तयः॑ । स॒ध्री॒ची॒ना नि॒युतो॑ दा॒वने॒ धिय॒ उप॑ ब्रुवत ईं॒ धियः॑ ॥ (२)
हे वायु! यज्ञभूमि में पहुंचने के लिए तुम्हें नियुत नामक अश्व मिले हैं. वे अपने कार्य में कुशल, तुमसे अनुराग करने वाले, सर्वदा तुम्हारे साथ रहने वाले हैं एवं तुम्हारी रुचि देखकर चलते हैं. हर्ष उत्पन्न करने वाले, मादक, भली प्रकार रखे गए, उज्ज्वल और मंत्र द्वारा आहूत सोमरस की बूंदें तुम्हें मुदित करें. बुद्धिसंपन्न यजमान तुम्हारे पास जाकर स्तुति करते हैं. (२)
O air! You have got an horse called Nyut to reach the yagnabhoomi. They are skilled in their work, who love you, are always going to be with you and see your interest. May the joy-making, intoxicating, well-kept, bright and spell-called drops of somras strike you. Wise hosts go to you and praise you. (2)
ऋग्वेद (मंडल 1)
वा॒युर्यु॑ङ्क्ते॒ रोहि॑ता वा॒युर॑रु॒णा वा॒यू रथे॑ अजि॒रा धु॒रि वोळ्ह॑वे॒ वहि॑ष्ठा धु॒रि वोळ्ह॑वे । प्र बो॑धया॒ पुरं॑धिं जा॒र आ स॑स॒तीमि॑व । प्र च॑क्षय॒ रोद॑सी वासयो॒षसः॒ श्रव॑से वासयो॒षसः॑ ॥ (३)
वायु भार ढोने के लिए रथ के अग्रभाग में लाल रंग के घोड़े जोड़ते हैं. वे अत्यंत गमनशील एवं बोझा ढोने में समर्थ हैं. जार जिस प्रकार तंद्रा में पड़ी नारी को जगा देता है, उसी प्रकार तुम यज्ञकर्ता यजमान को हव्यदान के लिए सावधान कर देते हो. धरती और आकाश को प्रकाशित करके तुम हव्य प्राप्ति के लिए उषाकाल को स्थापित करते हो. (३)
Red colored horses are added to the front of the chariot to carry the air load. They are extremely moving and capable of carrying loads. Just as the jar awakens the woman lying in the sleep, so you warn the yajnakar host for the havan. By illuminating the earth and the sky, you establish the ushakaal for attaining the auspiciousness. (3)
ऋग्वेद (मंडल 1)
तुभ्य॑मु॒षासः॒ शुच॑यः परा॒वति॑ भ॒द्रा वस्त्रा॑ तन्वते॒ दंसु॑ र॒श्मिषु॑ चि॒त्रा नव्ये॑षु र॒श्मिषु॑ । तुभ्यं॑ धे॒नुः स॑ब॒र्दुघा॒ विश्वा॒ वसू॑नि दोहते । अज॑नयो म॒रुतो॑ व॒क्षणा॑भ्यो दि॒व आ व॒क्षणा॑भ्यः ॥ (४)
हे वायु! उषाएं दूरवर्ती आकाश में अपनी किरणों से घरों को आच्छादित करती हुई पहले के समान कल्याणकारी वस्त्र का विस्तार करती हैं. उषाओं की किरणें नवीन हैं. तुम्हारे यज्ञ को संपन्न कराने के लिए ही गाएं अमृत बरसाती हुई अन्न देती हैं. तुमने दीप्त आकाश में मेघों को पूर्ण करके नदियों को प्रभावशील बनाया. (४)
O air! Usha extends the same welfare garment as before, covering the houses with their rays in the distant sky. The rays of the ushas are new. Sing to complete your yajna only give nectar rained food. You made the rivers effective by filling the clouds in the bright sky. (4)
ऋग्वेद (मंडल 1)
तुभ्यं॑ शु॒क्रासः॒ शुच॑यस्तुर॒ण्यवो॒ मदे॑षू॒ग्रा इ॑षणन्त भु॒र्वण्य॒पामि॑षन्त भु॒र्वणि॑ । त्वां त्सा॒री दस॑मानो॒ भग॑मीट्टे तक्व॒वीये॑ । त्वं विश्व॑स्मा॒द्भुव॑नात्पासि॒ धर्म॑णासु॒र्या॑त्पासि॒ धर्म॑णा ॥ (५)
हे वायु! उज्ज्वल, पवित्र एवं तेजपूर्ण सोम तुम्हें प्रमुदित करने के निमित्त आह्वान योग्य अग्नि के समीप जाते हैं एवं जलवर्षा की अभिलाषा करते हैं. अत्यंत भयभीत एवं बलहीन यजमान यज्ञादि विघातकों को भगाने के लिए तुम्हारी स्तुति करता है. हम हविधारणरूप धर्म से युक्त हैं, इसलिए तुम सभी भयों से हमारी रक्षा करो. (५)
O air! The bright, holy and bright mons go to the fire invocation to make you happy and desires to rain water. The very frightened and forceless host praises you for driving away the yagyaadi vighkars. We are possessed of religion in the form of a religion, so protect us from all your fears. (5)
ऋग्वेद (मंडल 1)
त्वं नो॑ वायवेषा॒मपू॑र्व्यः॒ सोमा॑नां प्रथ॒मः पी॒तिम॑र्हसि सु॒तानां॑ पी॒तिम॑र्हसि । उ॒तो वि॒हुत्म॑तीनां वि॒शां व॑व॒र्जुषी॑णाम् । विश्वा॒ इत्ते॑ धे॒नवो॑ दुह्र आ॒शिरं॑ घृ॒तं दु॑ह्रत आ॒शिर॑म् ॥ (६)
हे वायु! तुमने सबसे पहले सोमरस पिया है. तुम्हीं सबसे पहले निचोड़े गए सोम को पीने योग्य हो. तुम पापरहित एवं यज्ञकर्ता यजमानों का हव्य स्वीकार करते हो. समस्त गाएं तुम्हारे निमित्त ही दूध और घी देती हैं. (६)
O Vayu! You drank somrus first. You are the first to drink the soma that is squeezed out. You accept the offerings of innocent and yajna performing hosts. All the cows give milk and ghee for you. (6)