हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
अ॒मी॒व॒हा वा॑स्तोष्पते॒ विश्वा॑ रू॒पाण्या॑वि॒शन् । सखा॑ सु॒शेव॑ एधि नः ॥ (१)
हे रोगनाशक वास्तोष्पति! तुम समस्त रूपों में प्रवेश करते हुए हमारे सखा एवं सुखदायक बनकर बढ़ो. (१)
This is a disease-killer! You enter into all forms and grow up as our friend and soothing. (1)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
यद॑र्जुन सारमेय द॒तः पि॑शङ्ग॒ यच्छ॑से । वी॑व भ्राजन्त ऋ॒ष्टय॒ उप॒ स्रक्वे॑षु॒ बप्स॑तो॒ नि षु स्व॑प ॥ (२)
हे श्वेत एवं पीले रंग के कुत्ते! जब भूंकते समय तुम दांत निकालते हो, तब आयुधों के समान चमकते हुए तुम्हारे दांत होंठों में बहुत अच्छे लगते हैं. इस समय तुम भली प्रकार ओ. (२)
Oh, white and yellow dogs! When you remove your teeth while you're roasting, your teeth look great in the lips, shining like weapons. At this time you are well o. (2)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
स्ते॒नं रा॑य सारमेय॒ तस्क॑रं वा पुनःसर । स्तो॒तॄनिन्द्र॑स्य रायसि॒ किम॒स्मान्दु॑च्छुनायसे॒ नि षु स्व॑प ॥ (३)
हे एक स्थान में बार-बार आने वाले सारमेय! तुम चोरों और लुटेरों के पास जाओ. इंद्र के स्तोता हम लोगों के पास क्यों आते हो? हमें कष्ट क्यों देते हो? तुम सुखपूर्वक सोओ. (३)
O saramaya who comes again and again in one place! You go to thieves and robbers. Why do we come to indra's stota? Why do you hurt us? You sleep happily. (3)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
त्वं सू॑क॒रस्य॑ दर्दृहि॒ तव॑ दर्दर्तु सूक॒रः । स्तो॒तॄनिन्द्र॑स्य रायसि॒ किम॒स्मान्दु॑च्छुनायसे॒ नि षु स्व॑प ॥ (४)
तुम सूअर को विदीर्ण करो एवं सूअर तुम्हें विदीर्ण करे. इंद्र के स्तोता हम लोगों के पास क्यों आते हो? हमें कष्ट वयों देते हो? तुम सुखपूर्वक सोओ. (४)
You break the pig and the pig will pierce you. Why do we come to indra's stota? Do you hurt us? You sleep happily. (4)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
सस्तु॑ मा॒ता सस्तु॑ पि॒ता सस्तु॒ श्वा सस्तु॑ वि॒श्पतिः॑ । स॒सन्तु॒ सर्वे॑ ज्ञा॒तयः॒ सस्त्व॒यम॒भितो॒ जनः॑ ॥ (५)
हे सारमेय! तुम्हारी माता सोवें, तुम्हारे पिता सोवें, तुम स्वयं सोओ, घर का मुखिया सोवे, सब बांधव सोवें एवं चारों ओर से सब लोग सोवें. (५)
O sarmaya! Your mother sleeps, your father sleeps, you sleep yourself, the owner of the house sleep, sleeps all the bondage, and everyone from all around you sleeps. (5)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
य आस्ते॒ यश्च॒ चर॑ति॒ यश्च॒ पश्य॑ति नो॒ जनः॑ । तेषां॒ सं ह॑न्मो अ॒क्षाणि॒ यथे॒दं ह॒र्म्यं तथा॑ ॥ (६)
जो हमारे प्रदेश में ठहरता है, चलता है अथवा हमें देखता है, हम उसकी आंखें फोड़ देते हैं. वह घर के समान शांत व निश्चल हो जाता है. (६)
Whoever dwells, walks, or sees us in our land, we break his eyes. He becomes as quiet and quiet as home. (6)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
स॒हस्र॑श‍ृङ्गो वृष॒भो यः स॑मु॒द्रादु॒दाच॑रत् । तेना॑ सह॒स्ये॑ना व॒यं नि जना॑न्स्वापयामसि ॥ (७)
हजार किरणों वाले जो कामवर्षक सूर्य समुद्र से उदय होते हैं, उनकी सहायता से हम सब लोगों को सुला देंगे. (७)
With the help of the thousand-ray working sun that rises from the sea, we will put all the people to sleep. (7)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
प्रो॒ष्ठे॒श॒या व॑ह्येश॒या नारी॒र्यास्त॑ल्प॒शीव॑रीः । स्त्रियो॒ याः पुण्य॑गन्धा॒स्ताः सर्वाः॑ स्वापयामसि ॥ (८)
जो स्त्रियां आंगन में सोने वाली, सवारी पर सोने वाली, चारपाई पर सोने वाली एवं गंध वाली हैं, उन सबको हम सुला देंगे. (८)
We will put all the women who sleep in the courtyard, who sleep on the ride, sleep on the cot and have a smell. (8)